Menu Secondary

Aidwa
AIDWA
  • About AIDWA
  • Events
  • What we do
  • Inspiring Stories
  • Resources
  • Videos
  • NewsLetters
  • Press Releases
search
menu
  • About Aidwa
  • Events
  • Inspiring Stories
  • Magazines
  • Resources
  • Reports
  • Publications
  • Posters
  • What We Do
  • Food and Health
  • Women and Work
  • Gender Violence
  • Gender Discrimination
  • Communalism
  • Legal Intervention
  • Media Portrayal
About us
Contact us
Follow us Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu

AIDWA हिंदी न्यूज़लेटर - 17

13 Dec 2022
Click here to view Magazine

सम्पादकीय

 

जब से बिलकीस बानो और उनके परिवार की महिलाओं, बच्चों और मर्दों के बलात्कारी-हत्यारों को जेल से छोड़ दिया गया, उनका हार-माला से स्वागत किया गया, उन्हें ‘संस्कारी ब्राह्मण’ की पदवी से नवाज़ा गया, तबसे हिंसा ही हिंसा।  मामूली हिंसा नहीं।  महिला के शरीर को टुकड़ों में काट देना और टुकड़ों को व् उसके सर को फ्रिज में रख देना, बाप के शरीर के टुकड़े करके उसे इधर-उधर छिपाने की कोशिश करना, बेटी की हत्या कर, उसके शरीर को काटकर एक सूटकेस में ठूंस कर सडक के किनारे डाल  देना….कोई अंत ही नहीं है, देश का कोई हिस्सा बचा नहीं है।

यह दावा नहीं किया जा रहा है की बढती हिंसा का कारण गुजरात सरकार द्वारा 11 सजायाफ्ता अपराधियों को छोड़ना या उनके इस छूटने पर उनका महिमामंडन किया जाना इस बढती हिंसा का कारण है। यह शायद संयोग ही है।  लेकिन बहुत ही डरावने आंकड़े और खबरे यही बता रहे हैं की 15 अगस्त, 2022 के बाद से एक बहुत ही क्रूर तरह की हिंसा का दौर शुरू हुआ है।

श्रद्धा का मामला तो अभी भी टी वी चैनलों पर चल रहा है।  उसके शरीर के कितने टुकड़े किये गए।  उसका सर किस तरह फ्रिज में कई कई दिन तक पड़ा रहा। जैसा वीभत्स उसके साथ इसके पहले भी बहुत मार पीट और हिंसा हो चुकी थी।  और यह सब उसके साथ रहने वाले आफताब ने किया।  आफताब ने किया इस लिए रोज़ उसके काले कारनामो की बात, सुबह से शाम तक हमे सुनाई जा रही है।  लगता है की हमे यही समझाया जा रहा है कि उसने श्रद्धा के साथ यह सब कुछ इसी लिए किया क्योंकि व मुसलमान था।

एक माँ-बेटे ने मिलकर बाप को मार दिया; इसी वजह से  एक माँ-बाप ने मिलकर बेटी को मार दिया;  पता नहीं कितने पतियों ने अपने पत्नियों को मार डाला;  एक लड़के ने अपनी शादी-शुदा दोस्त को मार डाला – यह वारदात हमारी आँखों के सामने लायी जाती हैं और फिर तुरंत हटा दी जाती हैं।  जैसे कि उनका कोई महत्त्व ही नहीं है।  जैसे की हिन्दुओं के हाथ मारे जाने वालों के जान की कोई कीमत ही नहीं है।

यह कितनी खतरनाक बात है।

जो लोग आफताब की बात को दोहराते चले जा रहे हैं, उस पर हमला भी कर रहे हैं। उसके काले कारनामों के बारे में बोल बोलकर हिन्दू लड़कियों को मुसलमानों से दोस्ती और प्रेम करने से डरा रहे हैं उनको पता ही नहीं है की वह दरअसल अपराधियों का कितना मन बढ़ा रहे हैं, हिंसा के शिकार लोगों की संख्या कितनी बढा रहे हैं।

सवाल सिर्फ इतना ही नहीं की हिन्दू अपराधियों की चर्चा बहुत कम होती है या होती ही नहीं है, उनके जुर्म को भी इतना संगीन नहीं माना जाता है जितना कि एक मुसलमान द्वारा किये गए जुर्म को समझा जाता है।  सवाल यह भी है कि मुसलमान के जुर्म की दास्ताँ को बार-बार दोहराकर क्या हिन्दुओं द्वारा किये गए जुर्म को कुछ हद तक छुपाया नहीं जा रहा है?  उन पर बहुत कम समय के लिए लोगों के सामने रखकर, क्या उनकी क्रूरता को घटाया नहीं जा रहा है?  और हिन्दू अपराधियों के साथ नरमी बरतकर, उन पर चलने वाले मुकद्दमो को लगातार लंबित करके, जैसा कि हाथरस के मामले में आज तक हो रहा है, उन्हें हल्की सज़ा देकर या फिर कुछ दिन बाद छोड़कर, उन्हें भेडियो की तरह फिर मासूम बच्चियों, लड़कियों और महिलाओं का शिकार करने के लिए आज़ाद कर दिया जायेगा।

साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बहुत ही खतरनाक चीज़ है।  बहुसंख्यक समाज के महिला और पुरुष यह समझते हैं कि यह अल्पसंख्यकों के लिए ही खतरनाक है और इसका मजा भी लेते हैं।  उन्हें इस घटिया मज़ा लेने की प्रक्रिया को त्याग कर सोचने, समझने की ज़रूरत है। 

उन्हें इंसान नहीं भी बनना  है, केवल अपने हित के बारे में सोचना है तो सोच लें पर इस बात का ध्यान रखें कि अल्प संख्यक अपराधियों पर पूरा ध्यान केन्द्रित कर मीडिया, प्रशासन और  सरकार किस बात को अंजाम दे रही है? बहुसंख्यक समाज की महिलाओं बच्चियों और लड़कियों के साथ अत्याचार और हिंसा करने वाले सहधर्मियों की ख़तरनाक करतूतों पर पर्दा डालने और उनके अपराधों पर पर्दा डालने के लिए तो नहीं?

ध्रुवीकरण के हर पहलु से लड़ने में ही सम्पूर्ण समाज का भला है। 

 

सुभाषिनी अली

Click here to view Magazine

Subscribe
connect with us
about us
contact us